बाबुल की दुआ लेते जा।
सारी रस्में पूरी हो चुकी थीं । अंत में विदाई का समय आया । पाँच भाइयों की अकेली बहिन थी सुखिया । विदाई का नाम सुनते ही हीक हीक कर रोने लगी सबसे गले मिली मगर उन बाहों का तो उसको एहसास ही नहीं हुआ जिनमें खेलकर वह बड़ी हुई थी ।
"चलो जल्दी अब गाड़ी में बैठो ।"सुखिया के मामा ने प्रेम से कहा ।
सुखिया ने साफ माना कर दिया ।
"बड़े भैया कहाँ हैं ?"सुखिया के प्रश्न ने सभी की आँखों की नमी बढ़ा दी ।
"चलो चलो जल्दी ।"इस बार छोटे चाचा बोले ।
"भैया को बुलाओ ,जब तक नहीं आएंगे मैं ससुराल नहीं जाऊँगी ।
चाचा कैसे बताते कि बड़े भैया घर के बाहर बने कमरे में जमीन पर लेटे आँसू बहा रहे है ?
सुखिया की जिद के आगे बड़े भैया को झुकना पड़ा और वह कमरे से बाहर आ गए ।
"चुप हो जा बहिन आज हम अनाथ हो गए । क्षने को तो सबसे छोटी थी मगर ख्याल माँ की तरह रखती थी अब कौन रखेगा ?"बड़े भैया की घिग्गी बंध गई ।
"अरे मुझे तो कोई दुख नहीं देखो मैं कितनी खुश हूँ ?"सुखिया ने हिम्मत जुटाते हुए आँखों में उमड़ रहे आँसुओं के सैलाव को रोकए हुए कहा ।
बड़े भैया को थोड़ा अच्छा सा लगा उन्होंने गले मिल विदा कर दिया ।
सब महिलाओं की आँखों से जल धारा बह उठी आज फिर एक विदाई ने बेटी को समझदार जो बना दिया था ।
🥺🥺🥺
HARSHADA GOSAVI
24-May-2024 06:59 PM
V nice
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Varsha_Upadhyay
23-May-2024 07:44 AM
Nice
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